भाग ३

 

योग के तत्त्व


सचाई

 

सचाई भगवान् के दरवाजों की चाबी है ।

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सच्चे बनो ।

सचाई 'देवत्व' तक जाने का दरवाजा है ।

 

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     सचाई का अर्थ है सत्ता की सभी गतिविधियों को अभी तक प्राप्त उच्चतम चेतना और उपलब्धि तक उठाना ।

 

    सचाई समस्त सत्ता के सभी भागों और क्रियाकलापों को केन्द्रीय 'भागवत इच्छा' के चारों ओर एक और समस्वर करने की मांग करती है ।

२१ फरवरी, १९३०

 

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    सच्चा होने के लिए सत्ता के सभी भागों को भगवान् के लिए अपनी अभीप्सा में एक होना चाहिये-यह नहीं कि एक भाग तो चाहे और दूसरे भाग इन्कार करें या विद्रोह कर दें । अभीप्सा में सच्चा होने का अर्थ है भगवान् को भगवान् के लिए चाहना; नाम, ख्याति, प्रतिष्ठा और शक्ति या दर्प की किसी तुष्टि के लिए नहीं ।

 

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    भागवत कार्य के लिए अपने उत्सर्ग में पूरी तरह सच्चे बनो । यह तुम्हारे बल और तुम्हारी सफलता को आश्वासन देगा ।

 

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    भगवान् के प्रति अपने समर्पण में सच्चे और सम्पूर्ण बनो तो तुम्हारा जीवन सामञ्जस्यपूर्ण और सुन्दर बन जायेगा ।

 

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    डरो मत, तुम्हारी सचाई तुम्हारी सुरक्षा है ।

२२ नवम्बर, १९३४

 

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    अगर तुम गम्भीरता के साथ भगवान् से कहो ''मैं केवल तुझे ही चाहता हूं'' तो भगवान् परिस्थितियों को इस तरह संजो देंगे कि तुम सच्चे बनने के लिए बाधित होगे ।

८ जून, १९५४

 

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     सरल सचाई : समस्त प्रगति का आरम्भ ।

 

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     अपने आध्यात्मिक लक्ष्य तक पहुंचने के लिए सच्चे बनो, यानी उसे ही अपने जीवन का एकमात्र उद्देश्य बनाओ ।

३ जून, १९५८

 

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      आध्यात्मिक उपलब्धि के लिए अटल सचाई और निष्कपटता ही सबसे अधिक निश्चित मार्ग है ।

 

स्वांग मत करो, बनो ।

वचन मत दो, करो ।

सपने मत देखो, चरितार्थ करो ।

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     पूरी तरह सच्चे बनो और कोई विजय तुम्हारे लिए दुर्लभ न होगी ।

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     सचाई में विजय की निश्चिति है ।

 

     सचाई! सचाई! कितनी मधुर है तुम्हारी उपस्थिति की पवित्रता !

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     भगवान् हमेशा उनके साथी होते हैं जो उत्साही और सच्चे हैं ।

मार्च १९६३

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     एकमात्र मुक्ति पूर्ण सचाई और सत्यवादिता में है ।

२६ मार्च , १९६३

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     आवश्यकता है पूर्ण सचाई की ।

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     'सचाई' और 'निष्ठा' 'पथ' के दो रक्षक हैं ।

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२१ फरवरी, १९६५

     हम सभी विपरीत मतों के बावजूद सच्चे होना चाहते हैं; सचाई हमारी सुरक्षा है ।

१९ दिसम्बर, १९६७

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     मुझे किस चीज का सबसे अधिक विकास करना चाहिये ? और

     किस चीज का सबसे अधिक परित्याग ?

 

विकास-सचाई (यह भगवान् के रास्ते पर पूर्ण संलग्नता है ।)

     त्याग-पुरानी मानवीय आदतों के खिंचाव का ।

२५ फरवर, १९७०

 

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